लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
अब तक सूरदास
शहर में हाकिमों
के अत्याचार की
दुहाई देता रहा,
उसके मुहल्ले वाले
जॉन सेवक के
हितैषी होने पर
भी उससे सहानुभूति
करते रहे। निर्बलों
के प्रति स्वभावत:
करुणा उत्पन्न हो
जाती है। लेकिन
सूरदास की विजय
होते ही यह
सहानुभूति स्पध्र्दा के रूप
में प्रकट हुई।
यह शंका पैदा
हुई कि सूरदास
मन में हम
लोगों को तुच्छ
समझ रहा होगा।
कहता होगा, जब
मैंने राजा महेंद्रकुमार
सिंह-जैसों को
नीचा दिखा दिया,
उनका गर्व चूर-चूर कर
दिया, तो ये
लोग किस खेत
की मूली हैं।
सारा मुहल्ला उससे
मन-ही-मन
खार खाने लगा।
केवल एक ठाकुरदीन
था, जो अब
भी उसके पास
आया-जाया करता
था। उसे अब
यकीन हो गया
था कि सूरदास
को अवश्य किसी
देवता का इष्ट
है,उसने जरूर
कोई मंत्रा सिध्द
किया है, नहीं
तो उसकी इतनी
कहाँ मजाल कि
ऐसे-ऐसे प्रतापी
आदमियों का सिर
झुका देता। लोग
कहते हैं,जंत्रा-मंत्रा सब ढकोसला
है। यह कौतुक
देखकर भी उनकी
ऑंखें नहीं खुलतीं।
सूरदास के स्वभाव
में भी अब
कुछ परिवर्तन हुआ।
धौर्यशील वह पहले
ही से था;
पर न्याय और
धार्म के पक्ष
में कभी-कभी
उसे क्रोधा आ
जाता था। अब
उसमें अग्नि का
लेशांश भी न
रहा; घूर था,
जिस पर सभी
कूड़े फेंकते हैं।
मुहल्लेवाले राह चलते
उसे छेड़ते, आवाजें
कसते,ताने मारते;
पर वह किसी
को जवाब न
देता, सिर झुकाए
भीख माँगने जाता
और चुपके से
अपनी झोंपड़ी में
आकर पड़ रहता।
हाँ, मिठुआ के
मिजाज न मिलते
थे, किसी से
सीधो मुँह बात
न करता। कहता,
यह कोई न
समझे कि अंधा
भीख माँगता है,
अंधा बड़े-बड़ों
की पीठ में
धाूल लगा देता
है। बरबस लोगों
को छेड़ता, भले
आदमियों से बतबढ़ाव
कर बैठता। अपने
हमजोलियों से कहता,
चाहूँ तो सारे
मुहल्ले को बँधावा
दूँ। किसानों के
खेतों से बेधाड़क
चने, मटर, मूली,
गाजर उखाड़ लाता;
अगर कोई टोकता,
तो उससे लड़ने
को तैयार हो
जाता था। सूरदास
को नित्य उलहने
मिलने लगे। वह
अकेले में मिठुआ
को समझाता; पर
उस पर कुछ
असर न होता
था। अनर्थ यह
था कि सूरदास
की नम्रता और
सहिष्णुता पर तो
किसी की निगाह
न जाती थी,
मिठुआ की लनतरानियों
और दुष्टताओं पर
सभी की निगाह
पड़ती थी। लोग
यहाँ तक कह
जाते थे कि
सूरदास ने ही
उसे सिर चढ़ा
लिया है, बछवा
खूँटे ही के
बल कूदता है।र्
ईष्या बाल-क्रीड़ाओं
को भी कपट-नीति समझती
है।
आजकल सोफ़िया मि. क्लार्क
के साथ सूरदास
से अकसर मिला
करती थी। वह
नित्य उसे कुछ-न-कुछ
देती और उसकी
दिलजोई करती। पूछती रहती,
मुहल्लेवाले या राजा
साहब के आदमी
तुम्हें दिक तो
नहीं कर रहे
हैं। सूरदास जवाब
देता, मुझ पर
सब लोग दया
करते हैं, मुझे
किसी से शिकायत
नहीं है। मुहल्लेवाले
समझते थे, वह
बड़े साहब से
हम लोगों की
शिकायत करता है।
अन्योक्तियों द्वारा यह भाव
प्रकट भी करते-'सैंयाँ भये कोतवाल,
अब डर काहे
का'? 'प्यादे से
फरजी भयो, टेढ़ो-टेढ़ो जाए।' एक
बार किसी चोरी
के सम्बंधा में
नायकराम के घर
में तलाशी हो
गई। नायकराम को
संदेह हुआ, सूरदास
ने यह तीर
मारा है। इसी
भाँति एक बार
भैरों से आबकारी
के दारोगा ने
जवाब तलब किया।
भैरों ने शायद
नियम के विरुध्द
आधाी रात तक
दूकान खुली रखी
थी। भैरों का
भी शुभा सूरदास
ही पर हुआ,
इसी ने यह
चिनगारी छोड़ी है। इन
लोगों के संदेह
पर तो सूरदास
को बहुत दु:ख न
हुआ, लेकिन जब
सुभागी खुल्लमखुल्ला उसे लांछित
करने लगी, तो
उसे बहुत दु:ख हुआ।
उसे विश्वास था
कि कम-से-कम सुभागी
को मेरी नीयत
का हाल मालूम
है। उसे मुझको
इन लोगों के
अन्याय से बचाना
चाहिए था, मगर
उसका मन भी
मुझसे फिर गया।
इस भाँति कई महीने
गुजर गए। एक
दिन रात को
सूरदास खा-पीकर
लेटा हुआ था
कि किसी ने
आकर चुपके से
उसका हाथ पकड़ा।
सूरदास चौंका, पर सुभागी
की आवाज़ पहचानकर
बोला-क्या कहती
है?
सुभागी-कुछ नहीं,
जरा मड़ैया में
चलो, तुमसे कुछ
कहना है।
सूरदास उठा और
सुभागी के साथ
झोंपड़ी में आकर
बोला-कह, क्या
कहती है? अब
तो तुझे भी
मुझसे बैर हो
गया है। गालियाँ
देती फिरती है,
चारों ओर बदनाम
कर रही है।
बतला, मैंने तेरे
साथ कौन-सी
बुराई की थी
कि तने मेरी
बुराई पर कमर
बाँधा ली? और
लोग मुझे भला-बुरा कहते
हैं, मुझे रंज
नहीं होता; लेकिन
जब तुझे ताने
देते सुनता हूँ,
तो मुझे रोना
आता है, कलेजे
में पीड़ा-सी
होने लगती है।
जिस दिन भैरों
की तलबी हुई
थी, तूने कितना
कोसा था। सच
बता, क्या तुझे
भी सक हुआ
था कि मैंने
ही दारोगाजी से
शिकायत की है?
क्या तू मुझे
इतना नीच समझती
है? बता।
सुभागी ने करुणावरुध्द
कंठ से उत्तार
दिया-मैं तुम्हारा
जितना आदर करती
हूँ, उतना और
किसी का नहीं।
तुम अगर देवता
होते, तो भी
इतनी ही सिरधा
से तुम्हारी पूजा
करती।
सूरदास-मैं क्या
घमंड करता हूँ?
साहब से किसकी
शिकायत करता हूँ?
जब जमीन निकल
गई थी, तब
तो लोग मुझसे
न चिढ़ते थे।
अब जमीन छूट
जाने से क्यों
सब-के-सब
मेरे दुसमन हो
गए हैं? बता,
मैं क्या घमंड
करता हूँ? मेरी
जमीन छूट गई
है, तो कोई
बादसाही मिल गई
है कि घमंड
करूँगा?